इलियाना डीक्रूज कहती हैं, '' मैंने फिट होने की कोशिश करना बंद कर दिया है

 इलियाना डीक्रूज ने सोशल मीडिया पर एक स्पष्ट बयान दिया है, जिसमें उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक मोनोक्रोम तस्वीर पोस्ट की है।

मुंबई: अभिनेत्री इलियाना डिक्रूज ने सोशल मीडिया पर एक स्पष्ट बयान दिया है, जिसमें उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक मोनोक्रोम तस्वीर पोस्ट की है जिसमें वह बिकनी में पोज देती हुई नजर आ रही हैं।

छवि के साथ, उसने लिखा:
"मैं हमेशा चिंतित रहती हूं कि मैं कैसी दिखती हूं। मुझे चिंता है कि मेरे कूल्हे बहुत चौड़े हैं, मेरी जांघें भी भद्दी हैं, मेरी कमर पर्याप्त संकीर्ण नहीं है, मेरी पेट काफी सपाट नहीं है, मेरे स्तन काफी बड़े नहीं हैं। , मेरा बट बहुत बड़ा है, मेरी बाहें भी एकदम से, नाक बिल्कुल सीधी नहीं, होंठ पर्याप्त भरे हुए नहीं ... मुझे चिंता है कि मैं काफी

लम्बी

 नहीं हूं, बहुत सुंदर नहीं, मजाकिया पर्याप्त नहीं, स्मार्ट पर्याप्त नहीं, 'सही नहीं ' बस।
उसने खुद को "खूबसूरती से दोषपूर्ण" के रूप में टैग किया।

"
मुझे एहसास नहीं था कि मैं कभी भी संपूर्ण नहीं था। मुझे सुंदर रूप से दोषपूर्ण होना था। अलग-अलग। क्वर्की। अद्वितीय। हर निशान, हर टक्कर, हर 'दोष' ने मुझे, मुझे बनाया। मेरी अपनी तरह का सुंदर।" । इलियाना ने कहा कि उन्होंने अंदर फिट होने की कोशिश बंद कर दी है। "यही कारण है कि मैंने रोका है। दुनिया के आदर्शों के अनुरूप होने की कोशिश कर रहा है कि सुंदर होने का क्या मतलब है। मैंने फिट होने के लिए कोशिश करना बंद कर दिया है। मुझे क्यों करना चाहिए? जब मैं बाहर खड़े होने के लिए पैदा हुआ था," उसने कहा। । यह पहली बार नहीं है जब इलियाना ने आत्म प्रेम के बारे में बात की है। हाल ही में, उसने सभी से खुद को अपनी प्राथमिकता नंबर एक बनाने का आग्रह किया। इलियाना आखिरी बार स्क्रीन पर 2019 की मल्टीस्टारर "पगलपंती" में दिखाई दी थीं, जिसका निर्देशन अनीस बज्जी ने किया था। इसके बाद वह अजय देवगन के प्रोडक्शन में बनी, "द बिग बुल", जो कथित तौर पर 1992 के भारत के सबसे बड़े प्रतिभूति घोटाले पर आधारित फिल्म है। इस फिल्म में अभिषेक बच्चन भी हैं।
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प्रकृति की अमूल्ल्य औषधि एलोवेरा



नमस्कार दोसतो आज हम आपको एलोवेराके बारे में बताएँगे देंगे


एलोवरा एक प्रकृति उत्पाद  है जो  एक औषधिये पौधे के रूप  में  विख्यात है !

यहा सफोडिलियेशी कुल का  सदस्य  है यह लगभग ५००० साल पुराणी रामबाण औषदि है !

इसके विषिट  आषधिये गुणों  देखते हुए  इस संजीवनी पौधा भी  जाता है। 

इसकी लगभग ३०० से ज्यादा प्रजंतिया पायी  जाती है 

एलोवेरा   की खेती सर्वयप्रथम १९२० की गयी जो व्यसायिक रूप की गयी


जलवायु तथा वातावरण


एलोवेरा कैक्टस से अत्यधिक समानता प्रदर्शित करता है किन्तु यह एलोबबार्दीनेशी समूह लिली परिवार से सम्बंधित है इसके पौधे  को जल कम  जरूरत होती है इसलिए यह  छारीये  मिटटी में भी जीवन यापन कर सकता है

यह अत्यधिक गर्म चेत्र  में भी रह सकता है किन्तु ठण्ड सहन नहीं कर सकता है

इसके पैधेय की लम्बाई ६०-१००सेमि.तक  होता है

इसका फैलवा नीचे से निकलती है शाखाओं से होता  है

इसकी पत्तिंया मोती,भालाकार था मांसल होती है


एलोवेरा के उपयोग तथा औषधिये महत्वा


इसका  प्रयोग एंटीसेप्टिक, जीवाणुनाशक,रक्त को शुद्ध  करने तथा अल्सर में भी किया जाता है

यह अनेक प्रकार के वैक्टीरिया जैसे साल्मोनेला ,जो शरीर  में कही मवाद बनाते है ,


 को नस्ट कर    देता  है, यह उत्तम, वैक्टीरिया नाशक है 

प्रभावित अंगों पर  इसे सीधा  भी लगाया जा सकता है

इसका उपयोग  बहुत सरे उत्पादों जैसे - ताजे जैल,जूस, आहार पूरक औषधिये व सौंदर्य प्रशाधन आदि  

में  किया   जाता  है,

तवचा  को मॉस्चराइज़ करने में ,क्रीम ,साबुन,सौंपू आदि  में एलोवेरा का उपयोग होता  है  

वर्त्तमान में इसका उपयोग अधिकांशतः कॉस्मेटिक बनाने   में किया जा  रहा रहा है.

एलोवेरा जेल घालिए व के भरने में अत्यंत सहायक है इसमें जवलनशीलता के लिए प्रतिरोध

झमता होती     है

अलोवेरया में उपास्थि एंजाइम,कार्बोक्सीपेप्टीज,व ब्रेडीकैनेज  दोनों ही दर्द में आराम, पहुँचता है

यह  जवलनशीलता व सूजन  को कम करता है 

यह पेन्क्रियाज  के कार्यें में मदत करता है पैन्क्रियाज़ में इन्सुलिन का निर्माण नियंत्रित करता है 

अतः यह मधुमेह के मरीज़ों के लिए भी उपयोगी है ,

इसका उपयोग बवासीर के रोग के लिए भी किया जाता है


एलोवेरा का रासायनिक  संघटन


 

पपीते की खेती कैसे करें, जानिए उपयुक्त जलवायु, किस्में, रोग रोकथाम, पैदावार . (पपीते की खेती)

NAMASKAR AAJ HUM AAP KO BAATYENGE KI पपीते की खेती  कैसे   करें,


 PAPITAA पोषक तत्वों से भरपूर अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक जल्दी तैयार होने वाला फल है| पपीते का पके तथा कच्चे रूप में प्रयोग किया जाता है| इसका आर्थिक महत्व ताजे फलों के अतिरिक्त पपेन के कारण भी है| जिसका प्रयोग बहुत से औद्योगिक कामों में होता है| इसलिए पपीते की खेती की लोकप्रियता दिनों दिन बढ़ती जा रही है और क्षेत्रफल की दृष्टि से यह हमारे देश का पांचवा लोकप्रिय फल है| देश के अधिकांश भागों में घर की बगिया से लेकर बागों तक पपीते की बागवानी का क्षेत्र निरन्तर बढ़ता जा रहा हैं|
देश के विभिन्न राज्यों आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू, बिहार, आसाम, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर तथा मिजोरम में इसकी खेती की जा रही है| 


भूमि का चयन

पपीता किसी भी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है, लेकिन इसकी सबसे अच्छी उपज जीवांश युक्त हलकी दोमट या दोमट मृदा जिसमे जल निकास कि व्यवस्था अच्छी हो, इसलिए इसके लिए दोमट हवादार काली उपजाऊ भूमि का चयन करना चाहिए और जिसका पीएच मान 6.5 से 7.5 के बिच होना चाहिए और पानी बिलकुल नहीं रुकना चाहिए, पपीते की खेती के लिए मध्य काली और जलोढ़ भूमि भी अच्छी होती है|

भूमि की तैयारी

पपीते की बागवानी के लिए अप्रैल से जून माह में भूमि की 2 से 3 गहरी जुताई करके 1.5 फीट (लम्बाई x चौड़ाई x गहराई) के आकार के गड्डे खोदकर कुछ दिनों के लिए खुले छोड़ दिये जाते हैं| इसके पश्चात गड्डे की उपरी मिट्टी में 15 से 25 किलोग्राम पकी हुई गोबर की खाद व 1 किलोग्राम नीम की खली प्रति गड्ढे में भर देना चाहिए|

उन्नत किर-में

पपीता में नियंत्रित परागण के अभाव और बीजय प्रर्वधन के कारण किस्में अस्थाई हैं तथा एक ही किस्म में विभिन्नता पाई जाती हैं| अतः फूल आने से पहले नर और मादा पौधों का अनुमान लगाना कठिन है| इनकी कुछ प्रचलित किस्में जो देश के विभिन्न भागों में उगाई जाती हैं और अधिक संख्या में मादा फूलों के पौधे मिलते हैं| जिनमें मुख्य हैं, -

हनीड्यु या मधु बिन्दु, कुर्ग हनीड्यू, वांशिगटन, कोय- 1, कोय- 2, कोय- 3, फल उत्पादन तथा पपेन उत्पादन के लिए कोय- 5, कोय- 6, कोय- 7, एम एफ- 1 और पूसा मेजस्टी मुख्य हैं| पपेन का अन्तराष्ट्रीय व्यापार में महत्व है| इनमें पपेन अन्य किस्मों से अधिक निकलते हैं| उत्तरी भारत में तापक्रम का उतार-चढ़ाव काफी अधिक होता है| इसलिए उभयलिंगी फूल वाली किस्में ठीक उत्पादन नहीं दे पाती हैं|

पौधशाला तैयार करना

 के उत्पादन के लिए पौधशाला में पौधों को उगाना बहुत महत्व रखता है| इसके लिए बीज की मात्रा एक हैक्टेयर में पपीता के लिए 500 ग्राम काफी होती है| बीज पूर्ण पका हुआ, अच्छी तरह सूखा शीशे की बोतल या जार में रखा हो, जिसका मुंह ढका हो और 6 महीने से अधिक पुराना न हो, उपयुक्त है| बोने से पहले बीज को केप्टान से उपचारित कर लेना चाहिए| इसके लिए 3 ग्राम केप्टान एक किलोग्राम बीज को उपचारित करने के लिए काफी है|

बीज बोने के लिए क्यारी जो जमीन से उंची उटी हुई संकरी होनी चहिए, इसके अलावा बड़े गमले या लकड़ी के बक्सों का भी प्रयोग कर सकते हैं| इन्हे तैयार करने के लिए पत्ती की खाद, बालु तथा सड़ी हुई गोबर की खाद बराबर भागों में मिलाकर मिश्रण तैयार कर लेते हैं| जिस स्थान पर नर्सरी होती हैं, जमीन की अच्छी गुड़ाई-जुताई करके समस्त कंकड़ पत्थर तथा खरपतवार निकाल कर साफ कर देना चाहिए और जमीन को 2 प्रतिशत फोरमिलीन से उपचारित कर लेना चाहिए|

वह स्थान जहां पर तेज धूप तथा अधिक छाया न आये चुनना चाहिए| एक एकड़ के लिए 4056 मीटर जमीन में उगाये गये पौधे काफी होते हैं| इसमें 2.5 X 10 X 0.5 आकार की क्यारी बनाकर उपर्युक्त मिश्रण अच्छी तरह मिला दें और क्यारी को उपर से समतल कर दें| इसके बाद मिश्रण की तह लगाकर 1/2 X 2 इंच गहराई पर 3 X 6 इंच के फासले पर पंक्ति बनाकर उपचारित बीज बो दें और फिर 1/2 X 2 इंच गोबर की खाद के मिश्रण से ढककर लकड़ी, से दबा दे ताकि बीज उपर न रह जाये|

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प्लास्टिक थैलियों में बीज उगाना

इसके लिए 200 गेज और 20 X 15 सेंटीमीटर आकार की थैलियों की जरूरत होती है, जिनकों किसी कील से नीचे और साइड में छेद कर देते हैं| तथा 1:1:1:1 पत्ती की खाद, रेत, गोबर और मिट्टी का मिश्रण बनाकर थैलियों में भर देते हैं| प्रत्येक थैली में दो या तीन बीज बो देते हैं| प्रतिरोपण करते समय थैली का नीचे का भाग फाड़ देना चाहिए|

पौधरोपण और दुरी

पौध लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह तैयारी करके खेत को समतल कर लेना चाहिए, ताकि पानी न भर सकें| फिर पपीता की सघन व्यावसायिक बागवानी के लिए 50 X 50 X 50 सेंटीमीटर आकार के गड्ढ़े 1.5 X 1.5 मीटर के फासले पर खोद लेने चाहिए ओर प्रत्येक गड्ढे में 30 ग्राम बी एच सी 10 प्रतिशत डस्ट मिलाकर उपचारित कर लेना चाहिए| उंची बढ़ने वाली किस्मों के लिये 1.8 X 1.8 मीटर फासला रखते हैं| जब पौधे 20 से 25 सेंटीमीटर हो जायें तो पहले से तैयार किये पौधों को 2 से 3 की संख्या में प्रत्येक गड्ढ़े में 10 सेंटीमीटर के फासले पर लगा देते हैं|

पौधे लगाते समय इस बात का ध्यान रखते हैं, कि गड्ढ़े का ढाल पौधे की तरफ हो, पौधे लगाने के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए| पपीता लगाने का उचित समय अप्रैल, अगस्त और सितम्बर है| फूल आने के बाद केवल दस प्रतिशत नर पौधों को छोड़ कर सभी नर पौधों को निकाल देना चाहिए और उनकी जगह नये पौधे लगा दें| बरसात के दिनों में पेड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, जिससे पानी तने से न लगे|


खाद एवं उर्वरक

पपीता जल्दी फल देना शुरू कर देता है, इसलिए इसे अधिक उपजाऊ भूमि की जरूरत है| अतः अच्छी फसल के लिए 200 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस और 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधा की आवश्यकता होती है| इसके अतिरिक्त प्रति वर्ष पौधा 15 से 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 1 किलोग्राम हड्डी का चूरा तथा 1 किलोग्राम नीम की खली की जरूरत पड़ती है|

खाद की यह मात्रा तीन बराबर मात्रा में मार्च से अप्रेल, जुलाई से अगस्त और अक्टूबर महीनों में देनी चाहिए| दिसम्बर से जनवरी माह में उर्वरक नहीं डालना चाहिए, क्योंकि तापमान उत्तर भारत में इस समय काफी कम होता है और जाड़े में पौधों की वृद्धि रुक जाती है| पपीता लगाने के 4 माह बाद से उर्वरक डालने की आवश्यकता होती है|

सिंचाई प्रबंधन

पपीते के पौधे पानी के जमाव के प्रति संवेदनशील होते हैं| अतः इन्हें ऐसी भूमि में लगाना चाहिए जहाँ पानी के निकास का उत्तम प्रबंध हो खास तौर पर जहाँ अधिक वर्षा होती है और भारी मिट्टी है, वहाँ का विशेष ध्यान रखना चाहिए| पपीते के पौधों में समय-समय पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है| पानी की कमी होने पर उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है| यदि ठीक समय पर सिंचाई न कीजाये तो पौधे की वृद्धि रुक जाती है| जलवायु के अनुसार नये पौधों में 2 से 3 दिनों के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए, जबकि एक साल पुराने पौधों में गर्मी में 6 से 7 दिनों के अन्तराल पर तथा सर्दी में 10 से 15 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए (जब वर्षा न हो)|

पपीते के खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए और पौधे की जड़ के पास 15 से 20 सेंटीमीटर ऊँची मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, ताकि सिंचाई या वर्षा का पानी तने के सम्पर्क में न आये| 60 से 80 प्रतिशत तक ज़मीन में उपलब्ध मृदा नमी सिंचाई के लिए उपयुक्त पायी गयी हैं| यदि लम्बे समय तक पपीते के पौधे को पानी न मिले तो पौधे की वृद्धि एवं विकास रुक जाता है|

पाले से पौधों की रक्षा

सर्दी में छोटे पौधों की पाले से रक्षा करना आवश्यक होता है| इसके लिए छोटे पौधों को नवम्बर में तीन तरफ से घास-फूस या सरपत से अच्छी प्रकार ढक देते हैं| पूर्व-दक्षिण दिशा में पौधा खुला छोड़ दिया जाता है| जिससे सूर्य का प्रकाश पौधों को मिलता रहे| पाले की संभावना होने पर पौधों की सिंचाई करें और धुआ करने से भी पाले का भी प्रकोप कम होता है| फरवरी के अन्त में जब पाले का डर नहीं रहता, उस समय घास-फूस को हटा देना चाहिए|

निराई-गुड़ाई

पपीते का बाग साफ-सुथरा होना चाहिए| इसमें किसी प्रकार का खरपतवार नहीं होना चाहिए| प्रत्येक सिंचाई के बाद पौधे के चारों तरफ हल्की गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए| पौधे के आस-पास गहरी गुड़ाई या जुताई नहीं करनी चाहिए| गहरी गुड़ाई करने से खुराक लेने वाली जड़े कट जाती हैं| पपीते के पौधे के 3 से 4 फिट तक के क्षेत्र में खरपतवार नियंत्रण आवश्यक होता है| जैविक पलवार के प्रयोग से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है और मिट्टी में नमी भी अधिक समय तक सुरक्षित रखी जा सकती है| खरपतवार नियंत्रण द्वारा कीड़े-मकोड़ों से भी फसल की रक्षा हो जाती है एवं विषाणु रोग से भी बचाव होता है|

अन्तरवर्तीय फसलें

पपीते के पौधे के मध्य में प्रथम वर्ष में कम बढ़ने वाली सब्जियों जैसे फूलगोभी,पत्तागोभी प्याज, लहसुन आदि की खेती की जा सकती है|

विरलन

यदि पपीते में अधिक संख्या में फल लगते है, तो फल की अच्छी बढ़वार नहीं हो पाती है| कुछ फलों का आकार बहुत छोटा व कुरुप हो जाता है तथा कुछ अपने आप गिर जाते है| अतः अधिक पास पास लगे फलों को प्रारंभिक अवस्था में तोड़ देना चाहिए| जिससे बचे फल बड़े आकार के उच्च गुणवत्ता युक्त प्राप्त होते हैं|

अलाभकारी पौधों को हटाना

पपीते के पौधे लगाने के 28 से 30 माह बाद उसकी वृद्धि कम हो जाती है और जो फल लगते हैं| वे आकार में छोटे होते हैं| ऐसी अवस्था में पौधों को काट कर हटा देना चाहिए एवं नये पौधों का रोपण करना चाहिए|

कीट एवं नियंत्रण

सफेद मक्खी- यह कीट पपीते की पत्तियों का रस चूसकर हानि पहुँचाता है तथा विषाणु रोग फैलाने में भी सहायक होता है|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम हेतु इमिडाक्लोरोप्रिड 17.8 एस एल दवा की 100 से 120 मिलीलीटर प्रति हैक्टेयर की दर से अथवा थायोमिथाकजॉम 25 डब्ल्यू जी दवा की 100 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए|

लाल मकडी- यह कीट पपीते के पके फलो व पतियों की सतह पर पाया जाता हैं| इस कीट में प्रभावित पत्तियों पीली व फल काले रंग के हो जाते है|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम हेतु डायमिथोएट 30 ई सी 800 से 1000 मिलीलीटर का प्रति हैक्टेयर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए|

रोग एवं नियंत्रण

तना व पौध गलन- यह रोग किसी भी उम्र के पौधों को संक्रमित कर नष्ट कर सकता है| प्रभावित पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ने लगती है और पौधा मुरझाकर गिर जाता है| तने के छिलके पर भी गीले से चकत्ते दिखाई देते हैं तथा पौधे की जड़े सड़ने लगती हैं|


नियंत्रण- बुवाई पूर्व बीजों को कार्बेन्डाजिम 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए| खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम मेनकोजेब की 750 ग्राम मात्रा का प्रति हैक्टयर की दर से छिड़काव करें|

फल तोड़ना

पपीते के फल की यदि सही समय से एवं सही ढंग से तुड़ाई न की गई तो अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है, क्योंकि पपीता एक जल्दी खराब होने वाला फल है| फल को पेड़ पर तभी तक रखते हैं, जब तक कि फल परिपक्व न हो जाय| किन्तु पेड़ पर फल अधिक पका हुआ नहीं छोड़ते हैं| पकने पर कुछ प्रजातियों के फल पीले रंग के हो जाते हैं और कुछ प्रजातियाँ पकने पर भी हरी ही रहती हैं| फल की ऊपरी सतह पर हल्की खरोंच लगने से यदि पानी या दूध जैसा तरल पदार्थ न निकले तो समझना चाहिए कि फल परिपक्व हो गया है|

पपीते का पौधा लगाने के 6 से 7 माह बाद फूलना व फलना प्रारम्भ कर देता है| फल पौध लगाने के 10 से 11 माह बाद तोड़ने योग्य हो जाते हैं| फल तोड़ते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उन पर किसी तरह की खरोंच या दाग-धब्बे न पड़े अन्यथा उन पर कवकों का प्रकोप हो जायेगा| इससे फल सड़ जाते हैं|


तुड़ाई उपरान्त फल प्रबन्धन

पपीता ज्यादातर ताजा खाने के लिए प्रयोग किया जाता है| चूंकि पपीता बहुत ही नाजुक, जल्दी खराब होने वाला फल है| अतः इसे तुड़ाई के बाद रख-रखाव या दूर तक ले जाने के लिए विशेष ध्यान देना आवश्यक है| एक-एक पके हुए फल को कागज में अलग-अलग लपेट कर गत्ते के बक्से में रखा जाता है| फल पर खरोंच न आये इसका ध्यान रखना पड़ता है अन्यथा अनेक फफूंदी जनित रोग विकसित होते हैं| पके फलों की भण्डारण क्षमता कम तापमान पर रखने से बढ़ाई जा सकती है|

जब पपीते का रंग हरा से बदल कर पीला होने लगे तब फल को तोड़ना चाहिए और फिर पकाना चाहिए| 13 से 16 डिग्री सेंटीग्रेट पर पपीता भण्डारित किया जा सकता है| 12 डिग्री सेंटीग्रेट से नीचे तापमान पर पपीते को रखने से कम तापमान द्वारा धब्बे बन जाते हैं| जिसमें फफूंदीजनित बीमारियाँ विकसित हो जाती हैं|

यदि पपीते के फल को गरम पानी 55 डिग्री सेंटीग्रेट पर 30 मिनट तक उपचारित करते हैं, तो फल पर लगने वाले रोग तथा फल मक्खी से बचाया जा सकता है| पपीते के महत्व को देखते हुए इसका इस्तेमाल पेठा, जैम, जेली, खीर, हलवा, बर्फी, रायता, अचार, स्क्वैश तथा नेक्टर आदि बनाने के लिए किया जा सकता है| इससे दैनिक आवश्यकता से अधिक फल का इस्तेमाल किया जा सकता है|


अनलाक-थ्री में 31 अगस्त तक जारी रहेगा प्रतिबंध-डीएम

बस्ती । जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन ने जिले में अनलाक-थ्री के तहत जारी दिशा-निर्देश का सख्ती के साथ अनुपालन कराने को कहा है।

कहा धारा 144 का कड़ाई से पालन कराया जाए। एक अगस्त को ईद-उल-जुहा (बकरीद) की नमाज घरों में अदा करें। तीन अगस्त को रक्षाबंधन है,ऐसे में दो अगस्त को राखी व मिठाई की दुकानें खुली रहेंगी। स्वतंत्रता दिवस पर शारीरिक दूरी का पालन करते हुए कार्यक्रम होंगे। 12 अगस्त को जन्माष्टमी का त्योहार है, झांकी नहीं निकाली जाएगी। स्कूल, कालेज बंद रहेंगे।
सप्ताह के दो दिन की बंदी जारी रहेगी।इस दिन केवल आवश्यक बस्तुओं की दुकानें खुलेगीं।
डीएम ने कहा कि कंटेनमेंट जोन मे केवल स्वास्थ्य , स्वच्छता व डोर स्टेप डिलेवरी के लिए कर्मचारियो का आवागमन होगा।
रात 10 बजे से सुबह 5 बजे तक आवागमन पूरी तरहा प्रतिबंधित रहेगा।
स्कूल, कालेज, कोचिंग संस्थान व अन्य शैक्षणिक संस्थान 31 अगस्त बंद रहेगें।
सिनेमा हाल, मनोरंजन पार्क, थिएटर को खोलने की अनुमति नही होगी। सामाजिक, राजनैतिक, खेल, मनोरंजन, धार्मिक आयोजन नही होगें। इसका उल्लंघन करने पर महामारी अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।



 कृषि खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान के उत्पादन से संबंधित है। कृषि एक मुख्य विकास था, जो सभ्यताओं के उदय का कारण बना, इसमें पालतू जानवरों का पालन किया गया और पौधों (फसलों) को उगाया गया, जिससे अतिरिक्त खाद्य का उत्पादन हुआ। इसने अधिक घनी आबादी और स्तरीकृत समाज के विकास को सक्षम बनाया। कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप में जाना जाता है तथा इसी से संबंधित विषय बागवानी का अध्ययन बागवानी (हॉर्टिकल्चर) में किया जाता है।

गेंदा के फूल की खेती कैसे करे – Marigold flower cultivation in india

गेंदा के फूल की खेती कैसे करे – How to cultivate marigold flowers in india
गेंदा या गेंदे के फूल (Marigold flower cultivation in hindi) हम भारतीयों के लिए किसी भी तरह के परिचय के लिए आवश्यक नहीं है हम सभी भली भातिं जानते है  गेंदा हमारे घरो की शोभा बढ़ाने के साथ साथ   हमारे हर शुभ और धार्मिक आयोजनों में उपयोग में लाया जाने वाला एक बहत ही सुन्दर और आकर्षक फूल है जिसे हमे Marigold, गेंदा ,गेंधा,झेडू और गेंदे के नाम से जानते है
आइए आज हम कम से कम लागत और देखभाल में की जाने वाली फूलो की खेती में सबसे अग्रणी गेंदे की खेती कैसे करे विस्तार से जानते है

गेंदे के फूल का इतिहास :- History of marigold in hindi

गेंदे के फूल के प्रचार प्रसार के इतिहास की बात करी जाये तो प्राय हमारे यहाँ हर तरह के आयोजन में इसके प्रयोग से ये लगता है की इसकी शुरुवात दुनियाभर में भारत से ही हुयी है परन्तु ऐसा नहीं है गेंदे की दोनों मुख्य किस्मे फ्रेंच गेंदे और अफ्रीकन गेंदे का प्रसार 16 वी सदी से मैक्सिको से हुवा तो जो की धीरे धीरे अपनी मनमोहक सुन्दरता के कारण दुनियाभर में फैला गया

गेंदे के फायदे :- Benefits of marigold in hindi

  • गेंदे के फूल “फूल “ के रूप में तो हमारे काम आते ही ही इसके अलावा ये तेल, इत्र उद्योग और इसके साथ ही इसके कई ओषधिय रूप में भी हमारे काम आते है इसकी जानकारी बहुत कम लोगो को होती है
  • गेंदे की पत्तियों का पेस्ट स्किन के रोगों , , गठिया, मुँहासे, कमज़ोर त्वचा में फायदेमंद होता है इसके साथ ही ये एक्जिमा, और टूटी हुई कोशिकाओं में भी लाभप्रद होता है

गेंदे के फूल के घरेलु नुस्खे और उपाय – Home remedies for marigold flower

  • गेंदे की पत्तियों का पेस्ट फोड़े के उपचार में भी प्रयोग होता है। कान दर्द के उपचार में भी गेंदे की पत्तियों का सत्व उपयोग होता है।
  • पुष्प सत्व को रक्त स्वच्छक, बवासीर के उपचार तथा अल्सर और नेत्र संबंधी रोगों में उपयोगी माना जाता है।
  • टैजेटस की विभिन्न प्रजातियों में उपलब्ध तेल, इत्र उद्योग में प्रयोग किया जाता है।
  • गेंदा जलन को नष्ट करने वाला, मरोड़ को कम करने वाला, कवक को नष्ट करने वाला, पसीना लाने वाला, आर्तवजनकात्मक होता है। इसे टॉनिक के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।
  • इसके उपयोग से दर्द युक्त मासिक स्त्राव, एक्जिमा, त्वचा के रोग, गठिया, मुँहासे, कमज़ोर त्वचा और टूटी हुई कोशिकाओं में लाभ होता है|
  • गेंदे के फूल की खेती के लिए भूमि का चुनाव :- Selection of land for cultivating marigold flowers

  • के लिए हमे उचित जल निकास वाली हल्की बुलई दोमट मिट्टी जिसका की PH मान 5.6 से 6.5 के बीच हो को सबसे उत्तम माना जाता है मिट्टी दानेदार और भुरभुरी जितनी होगी उतनी ही लाभदायक होगी
  • ध्यान रहे व्यवसायिक स्तर पर गेंदे की खेती में अम्लीय या बहुत आधिक क्षारीय भूमि में गेंदे की खेती करने से बचना चाहिए इसके अलावा भूमि में कार्बनिक तत्वों की मात्रा जितनी ज्यादा रहेगी उतनी की फूलो की गुणवत्ता आधिक होगी

  • गेंदे के फूल की खेती की बीज बुवाई और पौधे के रोपण का समय :- Planting the seeds of marigold flowers and sowing the plant

  • पुष्पन ऋतुबीज बुवाई का समयपौध रोपण का समय
    वर्षामध्य – जूनमध्य – जुलाई
    सदीमध्य – सितम्बरमध्य – अक्टूबर
    गर्मीजनवरी – फरवरीफरवरी – मार्च

    गेंदा के फूल की खेती- जलवायु का चयन :- Selection of climate Marigold flower cultivation

    गेंदा फुल को हम गीष्म और शीत दोनों ऋतु या संभवतः सभी तरह के जलवायु में इसकी खेती कर सकते है परन्तु सबसे उपयुक्त शरद ऋतु में गेन्दा फुल की खेती करना आधिक फायदेमंद माना जाता है
  • गेंदे की उन्नत किस्में :- Advanced varieties of Marigolds
    गेंदे की मुख्यतः दो प्रजातियां अफ्रीकन गेंदा और फ्रांसीसी गेंदा होती है।
  • त की तैयारी :- Marigold flower cultivation Farm Preparation 

    गेंदे की खेती के लिए हम सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से 2 से 3 बार गहरी जुताई कर लेते है उसके बाद हम खेत में प्रति कुंतल के हिसाब से करीब 10 से 12 टन तक गोबर की खाद पोंधे लगाने के करीब 1 महीने पहले अच्छी तरह मिला लेते है
    एवंम पौधा लगाने से पहले प्रति एकड़ में करीब 200 किलो सिंगल सुपर फास्फेट (Single Superphosphate) और 135 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश खाद अच्छी तरह से मिला देते है इस तरह से करीब 1 महीने बाद हमे बीच से पोधा निकलता (बिचड़ा ) है जिसे हम शाम के समय में इसे लगाते है
  • खरपतवार नियत्रंण :- weed control

    पौधे की अच्छी तरह पैदावार बढे इसके लिए अति आवश्यक है की खेत में हमारी मुख्य फसल के साथ बढ़ने वाले खरपतवारो का समय समय पर निराई गुड़ाई या अन्य रासानिक कीटनाशको द्वारा खात्मा करते रहे जिससे की गेंदा के फूलों की गुणवत्ता हमे अच्छी मिलती रहे
  • गेंदे की खेती से कमाई :- Earning from Marigold cultivation in hindi

    भारतीय फूलों में सबसे आधिक उपयोगी लोकप्रिय,और हर तरह की मिट्टी और मौसम के अनुकूल लगाया जाने वाला गेंदा का फूल की खेती से की जाने वाली कमाई तो करते है इसके अलावा हम गेंदा की फ़सल से की जाने वाली आमदनी को हम गेंदा के बीजो उत्पादन से और भी ज्यादा हम बढ़ा सकते है समय के साथ ही अब गेंदा की नवीन उन्नत और संकर किस्मों की आवश्यकता भी बढ़ी है बीजो उत्पादन तकनीक को समझ कर हम प्रति 1 किलो बीज को करीब 1250/ तक में बेचा जा सकता है जी की गेंदा की फसल से होने वाली सामान्य खेती से कई गुणा आधिक है
  • Marigold flower cultivation seeds online / Genda ke Beej

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by Gaurav Mishra.

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